जल है तो कल है

सेवानिवृत्त प्रधान्नाध्यापिका दीनदयाल नगर मुरादाबाद
जल और जीव में परस्पर अटूट संबंध है। जीवन को बनाए रखने के लिए जिस प्रकार वायु की आवश्यकता है उसी प्रकार जल भी एक मूलभूत आवश्यक तत्व है। परंतु आज स्वच्छ पेयजल की समस्या दुनियाभर में छाई हुई है। पानी को लेकर कई देशों में तनाव भी लगातार बढ़ रहा है। कहते हैं कि यदि तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो वह पानी के लिए होगा। हमारे देश में बढ़ती हुई जनसंख्या, नगरीकरण, औद्योगीकरण के साथ जल संकट और भी बढ़ता जा रहा है। अधिकांश नदियां जैसे गंगा जमुना सरस्वती आदि का पानी पीने योग्य नहीं रह गया है। इसका मुख्य कारण जल प्रदूषण ही है। पृथ्वी का जल स्तर नीचे गिरता जा रहा है। वर्षा में प्रयोग होने वाले उर्वरक एवं कीटनाशक पदार्थों का बढ़ता उपयोग भूजल को खारा और विषैला बना रहा है।
यद्यपि प्रकृति ने भी हमारे देश को वर्षा के माध्यम से समुचित अंचल संपदा दी है परंतु इसके बावजूद भी जल की गंभीर समस्या से जूझना पड़ रहा है। मांग और पूर्ति के बीच में खाई बढ़ती जा रही है। अतः अब समय आ गया है कि वर्षा के पानी की एक-एक बूंद जो अनमोल है उसे सहेजना बहुत ही आवश्यक है। हम सभी को पानी के महत्व को समझना होगा और साथ ही जल संरक्षण का महत्व अन्य लोगों को भी समझाना होगा। पानी के दुरुपयोग को रोकना होगा और जल के स्रोतों को स्वच्छ रखने में सहयोग देना होगा।
संपदा दी है परंतु इसके बावजूद भी जल की गंभीर समस्या से जूझना पड़ रहा है। मांग और पूर्ति के बीच में खाई बढ़ती जा रही है। अतः अब समय आ गया है कि वर्षा के पानी की एक-एक बूंद जो अनमोल है उसे सहेजना बहुत ही आवश्यक है। हम सभी को पानी के महत्व को समझना होगा और साथ ही जल संरक्षण का महत्व अन्य लोगों को भी समझाना होगा। पानी के दुरुपयोग को रोकना होगा और जल के स्रोतों को स्वच्छ रखने में सहयोग देना होगा।
जल है तो कल है अर्थात यदि जल है तो ही हम जीवित रह पाएंगे अन्यथा नहीं। इसके लिए एक शाश्वत और टिकाऊ जल नीति अपनानी पड़ेगी तभी सभी सबका कल्याण संभव है।

देश की उन्नति में परिश्रम का महत्व

सेवानिवृत्त प्रधान्नाध्यापिका दीनदयाल नगर मुरादाबाद
जीवन में परिश्रम का बहुत महत्व है, ये बात सभी जानते हैं। जगह-जगह लिखा मिलता है “कर्म ही पूजा है” परन्तु मात्र सुनने या पढ़ने से ही ये उद्देश्य पूरा नहीं होता, जब तक इसको जीवन में क्रियान्वित न किया जाये । लक्ष्मी को भी परिश्रम का प्रतीक माना जाता है। अर्थात लक्ष्मी भी उसी घर में रहती है जहाँ परिश्रम और पुरषार्थ किया जाये । अनेकों महापुरषों और वैज्ञानिक के उदाहरण सामने आ जाते हैं, जिन्होंने परिश्रम एवं लगन से आशातीत सफलता प्राप्त की है । बिजली की खोज एडीसन नामक वैज्ञानिक ने की थी, जो उनके अथाह परिश्रम का ही प्रतिफल थी ।
परन्तु आज बहुत दुःख और खेद का विषय है कि हमारे देश में ऐसे लोगों की संख्या दिन प्रतिदिन बढती जा रही हैं, जो श्रम से जी चुराते हैं । चोरी, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार और अन्य गलत कामों से अपनी तिजोरियां भर रहे हैं । कम मेहनत करके अधिक से अधिक धन अर्जन कर रहे हैं । उस प्रकार अनैतिक और भ्रष्ट तरीकों से कमाया हुआ धन हेय और निन्दनीय दृष्टी से देखा जाता है । भले ही ऐसे लोगों का मान व प्रतिष्ठा अधिक हो परन्तु मेरे विचार में उनकी अंतरात्मा सदैव कचोटती रहती है।
गाँधी जी ने भी कहा है, “हमें श्रम को हेय और ओछा नहीं समझना चाहिए, उसका सम्मान करना चाहिए। अन्यथा हमारा पतन निश्चित है। ” इसलिए यदि हम सच्चे मन से चाहते हैं कि हमारे देश प्रगतिशील और उन्नतिशील बने तो श्रम देवता की उपासना करनी चाहिए क्योंकि श्रम और लक्ष्मी का अटूट रिश्ता है । हमारे सामने जापान देश का उदाहरण अनुकरणीय है।
इसका फैसला हम स्वयं करें कि देश की उन्नति चाहते हैं या अवनति ।