किसानों के दिल्ली कूच को देखते हुए पुलिस सुरक्षा व्यवस्था लगातार दुरुस्त करने में जुटी हुई है. इसको देखते हुए दिल्ली मेट्रो के कई स्टेशनों के गेट भी बंद कर दिए गए हैं. पहले केंद्रीय सचिवालय मेट्रो स्टेशन का गेट नंबर 2 बंद किया गया था, अब पटेल चौक मेट्रो स्टेशन के गेट पर ताला लगा दिया गया है. 

हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर किसान दिल्ली कूच के लिए अड़े हुए हैं. किसानों की जिद को देखते हुए दिल्ली पुलिस ने सुरक्षा कारणों से लाल किला को बंद करने का फैसला लिया है. लाल किले के मेन गेट पर कई लेयर की बैरिकेडिंग की गई है. गेट पर बस, ट्रक खड़ी कर दी गई जिससे कोई गाड़ी से अंदर आसानी से दाखिल न हो पाए.

दिल्ली कूच के लिए संगरूर के महिला चौक गांव की अनाज मंडी में हजारों ट्रैक्टर ट्राली लेकर किसान तैयार हैं. किसानों ने कहा हमें कोई शौक नहीं है. दिल्ली जाने के लिए हमारी मजबूरी है. किसान अपने साथ बॉर्डर पर घर बनाने के लिए सामान और साथ ही आने वाले समय में गर्मी के लिए फ्रिज साथ लेकर जा रहे हैं.  भारतीय किसान यूनियन सिद्धपुर के बैनर तले संगरूर के खनौरी बॉर्डर से हरियाणा में किसान प्रवेश करेंगे. उन्होंने कहा जो बॉर्डर हमें रोकने के लिए लोहे के कल सीमेंट की स्लैब लगाई गई है वह तोड़ने के लिए हमारे लिए कुछ मिनट की बात है. 

केंद्र सरकार ने दिल्ली सरकार से किसानों को पकड़ने के लिए बवाना स्टेडियम को जेल बनाने का प्रस्ताव दिया था, जिसे दिल्ली सरकार की ओर से खारिज कर दिया गया.  केंद्र के प्रस्ताव पर दिल्ली सरकार के गृह मंत्री कैलाश गहलोत का कहना है, “किसानों की मांगें वास्तविक हैं. शांतिपूर्ण विरोध करना हर नागरिक का संवैधानिक अधिकार है. इसलिए किसानों को गिरफ्तार करना गलत है…”

किसानों के दिल्ली कूच करने को लेकर दिल्ली की सभी सीमाएं सील कर दी गई हैं, लेकिन शंभू बॉर्डर पर किसान प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस के गोले भी दागे गए हैं. इस बीच कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, “पूरा बॉर्डर सील कर दिया गया है जैसे ये कोई दुश्मन देशों का बॉर्डर हो. हरियाणा-पंजाब, दिल्ली से सटे राजस्थान और उत्तर प्रदेश से सटे दिल्ली के पड़ोसी जिलों में इंटरनेट सेवाएं पूरी तरह से बंद कर दी गई हैं वो भी तब जब बोर्ड पेपर सिर पर हैं… दिल्ली के चारों तरफ के जिलो में मौखिक हिदायत दी गई है कि किसी किसान के ट्रैक्टर में 10 लीटर से ज्यादा डीज़ल नहीं डाला जाएगा… चौतरफा जुल्म का आलम है. अन्नदाता किसानों की हुंकार से डरी हुई मोदी सरकार एक बार फिर 100 साल पहले अंग्रेज़ों द्वारा दमनकारी 1917 के बिहार के चंपारण किसान आंदोलन… खेड़ा आंदोलन की याद दिला रही है.”