दिल्ली विधानसभा में शराब घोटाले और ‘शीशमहल’ पर CAG की रिपोर्ट पेश कर दी गई है. इन रिपोर्ट्स को दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने पेश किया है. इन रिपोर्ट्स में कई बड़े खुलासे हुए हैं. एक तरफ शराब घोटाले से जुड़ी रिपोर्ट में बताया गया है कि शराब नीति में बदलाव से हजारों करोड़ का नुकसान हुआ तो वहीं, दूसरी तरफ ‘शीशमहल’ को लेकर बताया गया कि इसमें जरूरत से कहीं ज्यादा पैसे खर्च किए गए. 

‘शीशमहल’ से जुड़ी रिपोर्ट में कहा गया है कि 6 फ्लैग स्टाफ रोड स्थित मुख्यमंत्री (सीएम) आवास में बदलाव के नाम पर लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ने टाइप VII और VIII आवास/बंगलों के लिए केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के प्रकाशित प्लिंथ एरिया दरों को अपनाते हुए ₹ 7.91 करोड़ का प्रारंभिक अनुमान (पीई) तैयार किया. पीडब्ल्यूडी ने काम को बेहद जरूरी घोषित किया. इस काम के लिए अनुमानित लागत से 13.21 फीसदी ज्यादा ₹8.62 करोड़ आवंटित किया गया, लेकिन आखिरकार अनुमानित लागत से 342.31 फीसदी ज्यादा ₹33.66 करोड़ में यह काम पूरा हुआ.

दिल्ली विधानसभा में मंगलवार को शराब नीति से जुड़ी CAG की रिपोर्ट पेश की गई. मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने शराब नीति से जुड़ी कैग की रिपोर्ट पेश की है. इस रिपोर्ट से पता चला है कि दिल्ली की शराब पॉलिसी बदलने से 2,026.91 करोड़ का नुकसान हुआ है. 

कैसे हुआ घाटा?

CAG रिपोर्ट में बताया गया है कि शराब नीति में कई अनियमितताएं और लापरवाह फैसले लिए गए, जिससे दिल्ली सरकार को बड़ा नुकसान हुआ
• 941.53 करोड़ का नुकसान – कई जगहों पर खुदरा शराब की दुकानें नहीं खुलीं
• 890 करोड़ का घाटा – सरेंडर किए गए लाइसेंसों को दोबारा नीलाम करने में सरकार नाकाम रही
• 144 करोड़ की छूट – कोविड-19 का बहाना बनाकर शराब कारोबारियों को दी गई
• 27 करोड़ का नुकसान – शराब कारोबारियों से उचित सुरक्षा जमा राशि नहीं ली गई

इन रास्तों से होकर ग्राहक तक पहुंचती है शराब

शराब की आपूर्ति प्रणाली में कई पक्ष शामिल होते हैं. निर्माताओं, दिल्ली में स्थित गोदामों, सरकारी और निजी शराब की दुकानों, होटलों, क्लबों और रेस्तरां से होते हुए आखिरकार उपभोक्ताओं तक शराब पहुंचती है. आबकारी विभाग विभिन्न मदों से राजस्व एकत्र करता है, जैसे- उत्पाद शुल्क, लाइसेंस शुल्क, परमिट शुल्क, आयात/निर्यात शुल्क आदि.

लाइसेंस जारी करने में नियमों का उल्लंघन

कैग रिपोर्ट में पाया गया कि आबकारी विभाग ने लाइसेंस जारी करने के दौरान नियमों का सही तरीके से पालन नहीं किया. दिल्ली आबकारी नियम, 2010 के नियम 35 के अनुसार, एक ही व्यक्ति या कंपनी को अलग-अलग प्रकार के लाइसेंस (थोक, खुदरा, होटल-रेस्तरां) नहीं दिए जा सकते. लेकिन जांच में पाया गया कि कुछ कंपनियों को एक साथ कई प्रकार के लाइसेंस दिए गए.

कई मामलों में आबकारी विभाग ने बिना जरूरी जांच किए ही लाइसेंस जारी कर दिए. इसमें वित्तीय स्थिरता, बिक्री और कीमतों से जुड़े दस्तावेज, अन्य राज्यों में घोषित कीमतें, और आवेदकों के आपराधिक रिकॉर्ड की जांच जैसे महत्वपूर्ण बिंदु शामिल थे. कुछ कंपनियों ने शराब व्यापार में कार्टेल बनाने और ब्रांड प्रमोशन के लिए अपनी हिस्सेदारी को छुपाने के लिए प्रॉक्सी मालिकाना हक का सहारा लिया.

मनमाने ढंग से तय की गई कीमत

रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि थोक विक्रेताओं को शराब की फैक्ट्री से निकलने वाली कीमत तय करने की स्वतंत्रता दी गई, जिससे कीमतों में हेरफेर किया गया. जांच में पाया गया कि एक ही कंपनी द्वारा विभिन्न राज्यों में बेची जाने वाली शराब की कीमत अलग-अलग थी. मनमाने ढंग से तय की गई कीमतों के कारण कुछ ब्रांडों की बिक्री घटी और सरकार को उत्पाद शुल्क के रूप में नुकसान हुआ. सरकार ने कंपनियों से लागत मूल्य की जांच नहीं की, जिससे मुनाफाखोरी और कर चोरी की संभावना बनी रही.

टेस्ट रिपोर्ट नहीं थी उपलब्ध

दिल्ली में बिकने वाली शराब की गुणवत्ता सुनिश्चित करना आबकारी विभाग की जिम्मेदारी है. नियमों के अनुसार, हर थोक विक्रेता को भारतीय मानक ब्यूरो के अनुसार टेस्ट रिपोर्ट जमा करनी होती है. लेकिन जांच में पाया गया कि कई लाइसेंस धारकों ने जरूरी गुणवत्ता जांच रिपोर्ट नहीं सौंपी. 51% मामलों में विदेशी शराब की टेस्ट रिपोर्ट या तो एक साल से पुरानी थी या उपलब्ध ही नहीं थी. कई रिपोर्टें उन लैब्स से जारी की गई थीं जो नेशनल एक्रेडिटेशन बोर्ड फॉर टेस्टिंग एंड कैलिब्रेशन लेबोरेट्रीज से मान्यता प्राप्त नहीं थीं.

आबकारी खुफिया ब्यूरो की भूमिका कमजोर रही. 65% जब्त की गई शराब देसी शराब थी, जो दर्शाता है कि इस शराब की अवैध आपूर्ति बड़े पैमाने पर हो रही थी. शराब तस्करी रोकने के लिए डेटा एनालिटिक्स और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग नहीं किया गया.

कैबिनेट की मंजूरी के बिना बड़ा बदलाव

नई आबकारी नीति 2021-22 में भी कई खामियां पाई गईं. सरकार ने निजी कंपनियों को थोक व्यापार का लाइसेंस देने का निर्णय लिया, जिससे सरकारी कंपनियों को बाहर कर दिया गया. कैबिनेट की मंजूरी के बिना नीति में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए, जिससे सरकारी खजाने को नुकसान हुआ. इस नीति के कारण सरकार को ₹2,002 करोड़ का नुकसान हुआ.

कंपनियों ने वापस कर दिए थे  लाइसेंस

कई कंपनियों ने अपने लाइसेंस बीच में ही वापस कर दिए, जिससे बिक्री प्रभावित हुई और सरकार को ₹890 करोड़ का घाटा हुआ. सरकार ने जोनल लाइसेंस धारकों को ₹941 करोड़ की छूट दी, जिससे राजस्व घाटा हुआ. कोविड-19 महामारी के दौरान सरकार ने लाइसेंस फीस में ₹144 करोड़ की छूट दी, जो आबकारी विभाग के पहले के निर्देशों के खिलाफ थी.