प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) ने बिहार के राजगीर में नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University) के नए परिसर का उद्घाटन किया. इस कार्यक्रम में विदेश मंत्री एस जयशंकर और 17 देशों के राजदूत शामिल हुए. इसके जरिए पीएम मोदी की कोशिश हमारी प्राचीन विरासत को पुनर्जीवित करने की है. विश्वविद्यालय का नया परिसर नालंदा के प्राचीन खंडहरों के करीब ही है. बिहार का नालंदा एक वक्‍त पर दुनिया का सबसे बड़ा शिक्षण केंद्र था और अब 815 सालों के लंबे इंतजार के बाद यह फिर से अपने पुराने स्वरूप में लौट रहा है. 

पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के सपनों का नालंदा विश्वविद्यालय अब साकार रूप ले रहा है. नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास, शिक्षा के प्रति भारतीय दृष्टिकोण और इसकी समृद्धि को दर्शाता है. इसका महत्व न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए अनमोल धरोहर के रूप में है. 

नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन भारत का एक प्रमुख और ऐतिहासिक शिक्षा केंद्र था. इसे दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय माना जाता है, जहां छात्र और शिक्षक एक ही परिसर में रहते थे. 

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 450 ई. में गुप्त सम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने की थी. बाद में इसे हर्षवर्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला. इस विश्वविद्यालय की भव्यता का अनुमान इससे लगाइए कि इसमें 300 कमरे, 7 बड़े कक्ष और अध्ययन के लिए 9 मंजिला एक विशाल पुस्तकालय था, जिसमें 3 लाख से अधिक किताबें थीं. 

नालंदा यूनिवर्सिटी का इतिहास काफी पुराना है. लगभग 1600 साल पहले नालंदा यूनिवर्सिटी की स्थापना पांचवी सदी में हुई थी. जब देश में नालंदा यूनिवर्सिटी बनाई गई तो दुनियाभर के छात्रों के लिए यह आर्कषण का केंद्र था. विशेषज्ञों के मुताबिक 12वीं शताब्दी में आक्रमणकारियों ने इस विश्वविद्यालयों को नष्ट कर दिया था. इससे पहले करीबन 800 सालों तक इन प्राचीन विद्यालय ने ना जाने कितने छात्रों को शिक्षा दी है.

अब प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की तर्ज पर नई नालंदा यूनिवर्सिटी बिहार के राजगीर में 25 नवंबर 2010 को स्थापित की गई. इस विश्वविद्यालय की स्थापना नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2010 के तहत की गई. इस अधिनियम में विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए वर्ष 2007 में फिलीपीन में आयोजित दूसरे पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में लिए गए निर्णय को लागू करने का प्रावधान किया गया है. 

भारत के अलावा 17 अन्‍य देशों की भागीदारी 

नए विश्वविद्यालय ने 2014 में 14 छात्रों के साथ एक अस्थायी स्थान से काम करना शुरू किया. विश्वविद्यालय का निर्माण कार्य 2017 में शुरू हुआ. भारत के अलावा इस विश्वविद्यालय में जिन 17 अन्य देशों की भागीदारी है उनमें ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, भूटान, ब्रुनेई दारुस्सलाम, कंबोडिया, चीन, इंडोनेशिया, लाओस, मॉरीशस, म्यांमार, न्यूजीलैंड, पुर्तगाल, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, श्रीलंका, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं. इन देशों ने विश्वविद्यालय के समर्थन में समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं. विश्वविद्यालय अंतरराष्ट्रीय छात्रों को 137 छात्रवृत्तियां प्रदान करता है.