
सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म ‘आंख मिचौली’ से जुड़े कानूनी विवाद मामले पर सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि फिल्म में दिखाए गए सीन और इसकी भाषा भेदभाव पूर्ण और दिव्यंगों की भावनाएं आहत करने वाली हैं. बता दें कि फिल्म पर दिव्यांगों का मजाक उड़ाने का इल्जाम लगाया गया था.
आरोप है कि फिल्म में दिव्यांगों का मजाकिया चित्रण करते हुए उनके गरिमापूर्ण जीवन जीने और समानता के बुनियादी अधिकार का हनन है.
सुप्रीम कोर्ट ने फिल्मों में दिव्यांगजनों को दिखाए जाने को लेकर भी गाइडलाइन भी जारी की है. कोर्ट ने कहा कि दिव्यांगजनों की चुनौतियां, उपलब्धियां और समाज में उनके योगदान को भी ध्यान में रखना चाहिए. फिल्म का संदेश क्या है, ये भी फिल्मकार या सीन क्रिएट करने वाले को ध्यान में रखना चाहिए.
दिव्यांगों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए गाइडलाइन जारी की है. सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार फिल्म, डॉक्यूमेंट्री और विजुअल मीडिया के लिए दिव्यांगजनों के हित में गाइडलाइन जारी की है.
कोर्ट ने कहा कि हम विजुअल मीडिया पर दिव्यांगों को दिखाए जाने के लिए एक रूपरेखा तैयार कर रहे हैं. CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि फिल्म प्रमाणन निकाय को स्क्रीनिंग की अनुमति देने से पहले विशेषज्ञों की राय लेनी चाहिए. रूढ़िवादिता गरिमा के विपरीत है और अनुच्छेद 14 के तहत भेदभाव विरोधी संहिता है.
कोर्ट ने अपने निर्देश में क्या कहा?
1. संस्थागत भेदभाव को बढ़ावा देने वाले शब्द जैसे ‘अपंग’ आदि नकारात्मक छवि को जन्म देते हैं.
2. ये भाषा सामाजिक बाधाओं को नजरअंदाज करती है.
3. रचनाकारों को ‘रतौंधी’ जैसी दिव्यांगता के बारे में पर्याप्त चिकित्सा जानकारी की जांच करनी चाहिए, जो भेदभाव को बढ़ा सकती है.
4. यह मिथकों पर आधारित नहीं होना चाहिए.
5. इसमें समान भागीदारी के बारे में जानकारी होनी चाहिए.
6. दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के लिए सम्मेलन में उनके अधिकार की वकालत करने वाले समूहों के परामर्श के बाद उन्हें चित्रित करने के उपाय शामिल हैं.