
पतंजलि मामले में सुप्रीम कोर्ट की फटकार का असर दिखाई देने लगा है. उत्तराखंड सरकार ने दो साल से अटका काम दो दिन में कर दिखाया है. उत्तराखंड औषधि नियंत्रण विभाग के लाइसेंसिंग अथॉरिटी ने पतंजलि की सहयोगी कंपनी दिव्य फार्मेसी को बड़ा झटका दिया है और इस कंपनी के 14 प्रोडक्ट्स पर बैन लगा दिया है. दिव्य फार्मेसी की इन दवाओं पर भ्रामक विज्ञापन और ड्रग्स व मैजिक रेमेडिक एक्ट का उल्लंघन का आरोप लगाया है. उत्तराखंड सरकार ने इस कार्रवाई के संबंध में सुप्रीम कोर्ट को भी सूचित कर दिया है और एक हलफनामा दायर किया है.
औषधि विभाग की लाइसेंसिंग अथॉरिटी ने जिन 14 उत्पादों (दिव्य फार्मेसी के) का लाइसेंस तत्काल प्रभाव से सस्पेंड किया है, उनमें स्वासारी गोल्ड, स्वसारी वटी, ब्रोंकोम’, स्वसारी प्रवाही, स्वसारी अवलेह, ‘मुक्ता वटी एक्स्ट्रा पावर, लिपिडोम, बीपी ग्रिट, मधुग्रिट, मधुनाशिनी वटी एक्स्ट्रा पावर, लिवमृत एडवांस, लिवोग्रिट, आईग्रिट गोल्ड और पतंजलि दृष्टि आई ड्रॉप का नाम शामिल है.
नहीं, अब ये प्रोडक्ट मार्केट में देखने को नहीं मिलेंगे. ना इन प्रोडक्ट की मैन्युक्चरिंग हो सकेगी. बैन के बाद ये प्रोडक्ट अब इतिहास बन गए हैं.
उत्तराखंड सरकार की औषधि लाइसेंसिंग अथॉरिटी ने एक आदेश जारी किया है. इसमें कहा, इन उत्पादों के विभिन्न माध्यमों से लगातार भ्रामक विज्ञापनों की अनेक शिकायतें संज्ञान में आई हैं. उन शिकायतों के संबंध में केंद्रीय आयुष मंत्रालय द्वारा दिए गए दिशा-निर्देशों के क्रम में अनुज्ञापी (दिव्या फार्मेसी) को प्रेषित पत्रों/नोटिसों के उपरांत भी उत्पादन किया गया. संबंधित नियमों, शर्तों, ड्रग्स एंव मैजिक रेमेडीज एक्ट 1954 और ड्रग्स एवं कॉस्मेटिक एक्ट 1945 का बार-बार उल्लंघन किया जा रहा है.
ड्रग्स एवं कॉस्मेटिक एक्ट 1945 की धारा 159 (1) के प्रावधान अनुसार संबंधित औषधियों की निर्माणाज्ञा (कंट्रक्शन ऑर्डर) को तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाता है. संबंधित फर्म को निर्देशित किया जाता है कि इन उत्पादों का निर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) तत्काल प्रभाव से बंद कर दें और योगों की मूल फॉर्मूलेशन सीट कार्यालय (औषधि विभाग) में जमा करना सुनिश्चित करें.
औषधि विभाग ने आदेश में कहा, औषधि निरीक्षक/जिला आयुर्वेदिक यूनानी अधिकारी, हरिद्वार द्वारा अवगत कराया गया ह कि संबंधित फर्म द्वारा वांछित सूचना आतिथि तक प्रदान नहीं की गई है और फर्म द्वारा दिया गया स्पष्टीकरण संतोषजनक नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने एक हफ्ते पहले ही सुनवाई में पतंजलि आयुर्वेद को साफ निर्देश दिए थे कि दवाओं से संबंधित भ्रामक विज्ञापन को तत्काल प्रभाव से रोका जाए और समाचार पत्रों के जरिए सार्वजनिक माफीनामा भी जारी किया जाए. औषधि विभाग ने अपने आदेश में कहा, संबंधित फर्म के द्वारा विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वर्तमान में भी भ्रामक विज्ञापन जारी रहना संज्ञानित हुआ है.
औषधि विभाग की लाइसेंसिंग अथॉरिटी ने अपने आदेश में ड्रग्स एवं कॉस्मेटिक एक्ट 1945 की धारा 159 (2) का जिक्र किया. आदेश में कहा, इस धारा के प्रावधान अंतर्गत तीन माह की समयावधि में अनुज्ञापी (दिव्या फार्मेसी) द्वारा सक्षम प्राधिकारी के समक्ष अपील दायर की जा सकती है.
लाइसेसिंग अथॉरिटी ने हलफनामे में यह भी बताया है कि उसने ड्रग्स और मैजिक रेमेडीज अधिनियम का उल्लंघन करने पर बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया है.
राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकारी ने सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद माफी की मांग की और कहा, SLA इस माननीय न्यायालय के आदेशों के साथ किसी भी अनजाने और गैर-अनजाने में अनुपालन के खिलाफ बिना शर्त और अयोग्य माफी मांगता है. SLA कोई जानबूझकर या इरादतन ऐसा कोई कार्य नहीं करेगा जो इस माननीय न्यायालय के किसी आदेश की अवज्ञा करेगा और इसके गौरव को कमजोर करता हो.
अथॉरिटी ने बेंच को यह भी बताया है कि उसने 24 अप्रैल को इंडियन मल्टीनेशनल कंपनी के खिलाफ की गई कार्रवाई के बारे में केंद्रीय आयुष मंत्रालय को सूचित कर दिया है. स्टेट लाइसेसिंग अथॉरिटी ने हलफनामे में कहा, SLA अपने कर्तव्यों के प्रति सतर्क रहा है और अधिनियमों और नियमों के तहत उचित अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए उचित कदम उठाए हैं. माननीय कोर्ट द्वारा की गई कोई भी टिप्पणी उनके करियर पर हानिकारक प्रभाव डालेगी. SLA स्थिति की गंभीरता और मामले की गंभीरता से पूरी तरह से अवगत है और उसने हमेशा इसके लिए अपनी सर्वोत्तम क्षमता और कानून के अनुसार अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने का प्रयास किया है.
बता दें कि 27 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद को ब्लडर प्रेशर, डायबिटीज, गठिया, अस्थमा और मोटापे जैसी बीमारियों के लिए उत्पादित दवाओं के विज्ञापन प्रकाशित करने से रोक दिया था. कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद और इसके प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण के खिलाफ अवमानना नोटिस जारी किया था. पतंजलि आयुर्वेद के कथित भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी.