
हिमालय जल रहा है… क्योंकि तीन हिमालयी राज्यों के जंगल में आग लगी है. यह लग-बुझ रही है. पहले उत्तराखंड के जंगलों की आग ने अपनी ओर ध्यान खींचा. इसके बाद हिमाचल प्रदेश. अब जम्मू और कश्मीर के राजौरी सेक्टर के जंगल में आग लगी है. पंजाब-हरियाणा में भी आग दिखती है लेकिन वो खेतों में पराली जलाने की होती है. इसका जंगल की आग से कोई लेना-देना नहीं है.
1 मई से 27 मई 2024 तक, यानी पिछले 27 दिनों में भारत में 80 हजार से ज्यादा जगहों पर आग लगने की खबर आई. सैटेलाइट ने उसे कैप्चर किया. ज्यादातर जंगल की आग थी. सबसे बड़ी दिक्कत हिमालय के राज्यों में है. जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के जंगलों में गर्मी की वजह से आग लग रही है.
जंगल में आग लगने की घटना हिमाचल में पिछले साल की तुलना में 1500 फीसदी और उत्तराखंड में 700 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. इंसानी गलतियां और मौसमी बदलाव बढ़ा रही है जंगल में आग की घटनाएं. ‘खतरनाक सुदंरता’ वाले जंगलों में किसने लगाई आग? क्या है Fire Season?
अब हमारी वजह से बढ़ रही ग्लोबल वॉर्मिंग और गलतियों की वजह से यहां के खूबसूरत जंगलों में आग लग रही है. IIT Roorkee के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन डिजास्टर मिटिगेशन एंड मैनेजमेंट विभाग के प्रोफेसर पीयूष श्रीवास्तव ने बताया कि हिमालयी राज्यों में मिश्रित जंगल हैं. जटिल भौगोलिक स्थितियां हैं. ढलाने हैं. सूखी पत्तियों और चीड़-देवदार के निडिल का ईंधन है. इन्हें ड्राई फ्यूल कंडिशन (Dry Fuel Condition) कहते हैं.
प्रो. पीयूष ने बताया कि हर तरह के मौसम की तरह जंगलों की आग का भी मौसम होता है. यानी Wildfire Season. भारत में आमतौर पर ये सीजन नंवबर से जून तक होता है. इसी में पूरे देश के अलग-अलग जंगलों में आग लगती है. इस बार प्री-मॉनसून सीजन में पश्चिमी विक्षोभ की घटनाएं कम हुईं. बर्फबारी कम हुई है.
बारिश नहीं हुई. आमतौर पर इस सीजन में विक्षोभ की 15-20 घटनाएं होती थीं, लेकिन इस बार सिर्फ 7 से 8 बार ही हुई. इससे बारिश हुई नहीं. सतह में नमी बची नहीं. जंगल सर्दियों में भी सूखे ही रहे. फरवरी में भी आग लगने की खबरें आती रहीं.
प्रो. पीयूष ने बताया कि जंगलों में लगी भयानक आग की वजह से हवा की गुणवत्ता बिगड़ेगी. हवा में ज्यादा कार्बन कण मिल जाएंगे. तेज चलती हवा के साथ ये दूर-दूर तक फैलेंगे. ग्लेशियरों पर जमा होंगे. इससे ग्लेशियर के पिघलने की आशंका बढ़ जाती है. ऐसे में चमोली और केदारनाथ जैसे हादसे भी हो सकते हैं.
अल-नीनो की वजह से गर्मी बढ़ी हुई है. हीटवेव चल रहा है. पारा ऊपर है. सर्दियों के मौसम में बारिश कम हुई है. 2015-16 में भी ऐसी ही हालत थी. तब सिर्फ 2016 में 4400 हेक्टेयर जंगल आग की चपेट में आए थे. गर्मियों में लगने वाली आग की वजह से पहाड़ी मिट्टी और सतह कमजोर हो जाती है. इसके बाद बारिश आने पर ये मिट्टी खतरनाक हो जाती है. लैंडस्लाइड होते हैं. फ्लैश फ्लड की आशंका रहती है. गंदी मिट्टी बहकर नदियों में मिलती है. इससे नदियों की जल-गुणवत्ता खराब हो जाती है.
वैज्ञानिकों को पूरा भरोसा है कि ये आग इंसानों द्वारा गलती से या फिर जानबूझकर लगाई गई है. जो अब फैलती चली जा रही है. जंगल की आग के 95 फीसदी मामलों में इंसानी गतिविधियां ही मुख्य वजह होती हैं. किसी ने बीड़ी पीकर फेंक दिया. पत्ता या कूड़ा जला दिया. पहले बारिश, बर्फबारी और नमी की वजह से आग बुझ जाती थी. लेकिन अब ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से तापमान बढ़ता जा रहा है. अल-नीनो का भी असर है. इसलिए जरा सी चिंगारी पूरे जंगल को खाक करने की ताकत रखती है.
जंगल की आग कब लग सकती है. कहां लग सकती है. इसे लेकर प्रो. पीयूष और उनके साथी आनंदू मिलकर एक स्वदेशी अर्ली वॉर्निंग सिस्टम बना रहे हैं. जो कि खास तरह का कंप्यूटर मॉडल होगा. जो खास तापमान, मौसमी स्थितियों, भौगोलिक परिस्थ्तियों के ताजा डेटा डालने पर जंगल की आग की भविष्यवाणी कर सकेगा. इससे भविष्य में जंगली आग की जानकारी पहले मिल जाएगी. उससे बचने की कवायद पहले पूरी कर ली जाएगी. प्रो. पीयूष ने बताया कि भविष्य में इसरो-नासा के नए सैटेलाइट NISAR से भी मदद मिल सकती है.