
अल नीनो कमजोर हो रहा है लेकिन अगले तीन महीनों में दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में पारा सर चढ़कर बोलेगा. यह हालात भारत में भी देखने को मिलेगा. इससे बारिश के पैटर्न पर भी असर पड़ सकता है. इस साल मार्च से मई के बीच अल नीनो का असर 60 फीसदी रहेगा. अप्रैल से जून यह सामान्य रहेगा.
अप्रैल से जून के बीच न तो अल नीनो रहेगा. न ही ला नीना. लेकिन अल नीनो का असर देखने को मिलेगा. यह जानकारी विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने दी है. पिछले साल आया अल नीनो अब तक के पांच सबसे ताकतवर अल नीनो में से एक था. यह अपने अत्यधिक स्तर से घटकर अब कमजोर पड़ रहा है.
WMO ने बताया कि साल के अंत में ला नीना बन सकता है. हालांकि इसे लेकर अभी कुछ कहना मुश्किल है. अल नीनो औसतन हर दो से सात साल के बीच आता है. इसका असर 9 से 12 महीने रहता है. अल नीनो यह जलवायु का ऐसा पैटर्न है, जो मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर में होता है. इसमें समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है.
भारत में मौसम और तूफान का पैटर्न बदल सकता है. हालांकि जिस तरह इंसानी गतिविधियों के चलते जलवायु में बदलाव आ रहे हैं. उनका असर अल नीनो पर भी पड़ रहा है. बढ़ते तापमान का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जून 2023 से अब कोई भी महीना ऐसा नहीं रहा, जब वैश्विक तापमान ने नया रिकॉर्ड न बनाया हो. 2023 अब तक का सबसे गर्म साल था.
भारत में औसत बारिश पर पॉजिटिव असर पड़ेगा. उत्तर प्रदेश, झारखंड और बिहार जैसे राज्यों में फिर से बारिश में कमी का सामना करना पड़ सकता है. पिछला ला नीना तीन साल चलने के बाद मार्च 2023 में खत्म हुआ था. इसके चलते उस साल मॉनसून में अच्छी बारिश हुई. अक्टूबर तक बारिश हुई. साथ ही फ्लैश फ्लड और भूस्खलन भी देखे गए.