
महाराष्ट्र के पुणे की एक विशेष अदालत अंधविश्वास के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले कार्यकर्ता डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के मामले में 11 साल बाद अपना फैसला सुना दिया है. इस साजिश के मास्टरमाइंड डॉ. वीरेंद्र तावड़े सहित दो अन्य आरोपी वकील संजीव पुनालेकर और विक्रम भावे को कोर्ट ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है.
वहीं दाभोलकर को गोली मारने वाले शरद कालस्कर और सचिन एंडुरे को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है और प्रत्येक पर 5 लाख का जुर्माना भी लगाया गया है.
जाने-माने तर्कवादी दाभोलकर (67) की 20 अगस्त, 2013 को यहां ओंकारेश्वर ब्रिज पर सुबह की सैर के दौरान गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.
मामले में पांच लोगों को आरोपी बनाया गया था. मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने 20 गवाहों की जांच की, जबकि बचाव पक्ष ने दो गवाहों की जांच की. अभियोजन पक्ष ने अपनी अंतिम दलीलों में कहा था कि आरोपी अंधविश्वास के खिलाफ दाभोलकर के अभियान के विरोधी थे. पुणे पुलिस ने शुरू में मामले की जांच की थी. केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने 2014 में बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के बाद जांच अपने हाथ में ली और जून 2016 में हिंदू दक्षिणपंथी संगठन सनातन संस्था से जुड़े ईएनटी सर्जन डॉ. वीरेंद्रसिंह तावड़े को गिरफ्तार किया था.
अभियोजन पक्ष के अनुसार, तावड़े हत्या के मास्टरमाइंड में से एक था. तावड़े और कुछ अन्य आरोपी सनातन संस्था से जुड़े हुए थे. सीबीआई ने पहले अपने आरोपपत्र में भगोड़े सारंग अकोलकर और विनय पवार को शूटर के रूप में नामित किया था. लेकिन बाद में इसने सचिन अंदुरे और शरद कालस्कर को गिरफ्तार किया और एक पूरक आरोपपत्र में दावा किया कि उन्होंने दाभोलकर को गोली मारी थी. इसके बाद, केंद्रीय एजेंसी ने अधिवक्ता संजीव पुनालेकर और विक्रम भावे को कथित सह-षड्यंत्रकारियों के रूप में गिरफ्तार किया.
मुकदमे के दौरान बचाव पक्ष के वकीलों में से एक, अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने शूटरों की पहचान के बारे में सीबीआई के ढुलमुल रवैये पर सवाल उठाया था. आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी (साजिश), 302 (हत्या), शस्त्र अधिनियम की संबंधित धाराओं और यूएपीए की धारा 16 (आतंकवादी कृत्य के लिए सजा) के तहत मामला दर्ज किया गया था.
जबकि तावड़े, अंदुरे और कलस्कर जेल में हैं, पुनालेकर और भावे जमानत पर बाहर हैं. दाभोलकर की हत्या के बाद अगले चार वर्षों में तीन अन्य तर्कवादियों/कार्यकर्ताओं की हत्या हुई: कम्युनिस्ट नेता गोविंद पानसरे (कोल्हापुर, फरवरी 2015), कन्नड़ विद्वान और लेखक एम एम कलबुर्गी (धारवाड़, अगस्त 2015) और पत्रकार गौरी लंकेश (बेंगलुरु, सितंबर 2017). यह संदेह था कि इन चार मामलों में अपराधी एक-दूसरे से जुड़े हुए थे.