
सुप्रीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है. मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ इस बात पर विचार करेगी कि मामले पर अंतिम निर्णय आने तक संशोधित कानून के क्रियान्वयन पर रोक लगाई जानी चाहिए या नहीं. सीजेआई के साथ जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह दूसरे जज हैं. दोनों पक्ष अपनी दलीलें अदालत के किसी अंतरिम निर्णय पर पहुंचने से पहले पेश करेंगे.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि शुरुआत में तीन बिंदु तय किए गए. हमने तीन पर जवाब दिए. लेकिन पक्षकारों ने इन तीन मुद्दों से भी अलग मुद्दों का जिक्र किया है. सुप्रीम कोर्ट सिर्फ तीन ही मुद्दों पर फोकस रखे. मुस्लिम पक्ष के वकील कपिल सिब्बल ने सॉलिसिटर जनरल की मांग का विरोध करते हुए कहा कि हम तो सभी मुद्दों पर दलील रखेंगे. यह सम्पूर्ण वक्फ सम्पत्ति पर कब्जा करने का मामला है.
कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि इस मामले में अंतरिम आदेश जारी करने पर सुनवाई होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि ये कानून असंवैधानिक और वक्फ संपत्ति को कंट्रोल करने वाला और छीनने वाला है. संशोधित कानून में प्रावधान किया गया है कि वक्फ की जाने वाली संपत्ति पर किसी विवाद की आशंका से जांच होगी. कलेक्टर जांच करेंगे. जांच की कोई समय सीमा नहीं है. जब तक जांच रिपोर्ट नहीं आएगी तब तक संपत्ति वक्फ नहीं मानी जाएगी. जबकि अल्लाह के नाम पर वक्फ संपत्ति दी जाती है. एक बार वक्फ हो गया तो हमेशा के लिए हो गया. सरकार उसमें आर्थिक मदद नहीं दे सकती. मस्जिदों में चढ़ावा नहीं होता, वक्फ संस्थाएं दान से चलती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि दरगाहों में तो चढ़ावा होता है. इस पर सिब्बल ने कहा कि मैं मस्जिदों की बात कर रहा हूं. दरगाह अलग है. सिब्बल ने कहा कि मंदिरों में चढ़ावा आता है लेकिन मस्जिदों में नहीं. यही वक्फ बाय यूजर है. बाबरी मस्जिद भी ऐसी ही थी. 1923 से लेकर 1954 तक अलग अलग प्रावधान हुए, लेकिन बुनियादी सिद्धांत यही रहे.
कपिल सिब्बल ने अपनी दलीलें दीं. उन्होंने कहा कि संशोधन को वक्फ को एक ऐसी प्रक्रिया के माध्यम से नियंत्रित करने के लिए तैयार किया गया है जो कार्यकारी है. वक्फ को दान दी गईं निजी संपत्तियों को केवल इसलिए छीना जा रहा है क्योंकि कोई विवाद है. इस कानून को वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करने के लिए डिजाइन किया गया है. स्टेट धार्मिक संस्थाओं की फंडिंग नहीं कर सकता. यदि कोई मस्जिद या कब्रिस्तान है तो स्टेट उसकी फंडिंग नहीं कर सकता, यह सब निजी संपत्ति के माध्यम से ही होना चाहिए. अगर आप मस्जिद में जाते हैं तो वहां मंदिरों की तरह चढवा नहीं होता, उनके पास 1000 करोड़, 2000 करोड़ नहीं होते. सीजेआई बीआर गवई ने कपिल सिब्बल की दलील पर कहा- मैं दरगाह भी गया, चर्च भी गया… हर किसी के पास यह (चढ़ावे का पैसा) है. सिब्बल ने कहा- दरगाह दूसरी बात है, मैं मस्जिदों की बात कर रहा.
कपिल सिब्बल ने कहा 2025 का कानून पुराने कानून से बिल्कुल अलग है. इसमें दो अवधारणाएं हैं- उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ बनाई गईं संपत्तियां और इनका समर्पण. बाबरी मस्जिद मामले में भी इसे मान्यता दी गई थी. उपयोगकर्ता द्वारा बनाए गए कई वक्फ सैकड़ों साल पहले बनाए गए थे. वे कहां जाएंगे? सीजेआई- क्या पहले के कानून में पंजीकरण की आवश्यकता थी? सिब्बल- हां.. इसमें कहा गया था कि इसे पंजीकृत किया जाएगा. सीजेआई- सूचना के तौर पर हम पूछ रहे हैं कि क्या पुराने कानून के तहत वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण का प्रावधान अनिवार्य था या सिर्फ ऐसा करने का निर्देश था? सिब्बल- ने कहा ‘Shall’ शब्द का इस्तेमाल किया गया था. CJI- केवल ‘Shall’ शब्द के प्रयोग से पंजीकरण कराना अनिवार्य नहीं हो सकता, क्या ऐसा नहीं करने पर कोई प्रावधान था? यदि ऐसा था तो क्या पंजीकरण अनिवार्य हो सकता है? तो हम आपकी इस दलील को दर्ज करेंगे कि पुराने अधिनियम के तहत पंजीकरण की आवश्यकता थी, लेकिन ऐसा नहीं करने पर क्या होगा इसका कोई प्रावधान नहीं था, इसलिए पंजीकरण न कराने पर कुछ नहीं होने वाला था.
कपिल सिब्बल ने कहा कि 1954 के बाद वक्फ कानून में जितने भी संशोधन हुए, उनमें वक्फ प्रॉपर्टी का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य था. अदालत ने पूछा- क्या वक्फ बाय यूजर में भी पंजीकरण अनिवार्य था. सिब्बल ने हां में जवाब दिया. अदालत ने कहा- तो आप कह रहे 1954 से पहले उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ का पंजीकरण आवश्यक नहीं था और 1954 के बाद यह आवश्यक हो गया. सिब्बल- इस बारे में कुछ भ्रम है, यह 1923 हो सकता है. मुख्य न्यायाधीश ने कहा- बहुत दबाव है, सिर्फ हम पर ही नहीं बल्कि आप पर भी.