दुबई में 16 जुलाई 2024 की दोपहर जो तापमान रिकॉर्ड किया गया, वो नरक की गर्मी से कम नहीं है. दुबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर तापमान 144 डिग्री फैरेनहाइट था. यानी 62.44 डिग्री सेल्सियस. शाम को पांच बजे यह घटकर 53.9 डिग्री सेल्सियस हो गया. लेकिन क्या इतनी गर्मी किसी भी शहर, जीव-जंतुओं के लिए ठीक है? 

जिस समय यह तापमान दर्ज किया गया, उस समय हवा भी गर्म थी. एयर टेंपरेचर 42 डिग्री सेल्सियस था. ड्यू प्वाइंट यानी नमी 85 फीसदी था. इसलिए तापमान 62.22 डिग्री सेल्सियस हो गया. यानी दुबई में Wet Bulb Temperature का माहौल है. ऐसा मौसम जानलेवा होता है. इसमें सर्वाइवल बेहद मुश्किल है. 

दुबई में गर्मियों में आमतौर पर पारा 40 डिग्री सेल्सियस पार ही रहता है. यहां की गर्मी को बर्दाश्त करना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है. पूरी दुनिया में इस साल की गर्मियों का मौसम वाकई अत्यधिक गर्म था. इतनी ज्यादा ह्यूमिडिटी थी कि उसने पूरे खाड़ी इलाके का दम घोंटा है. 

असल में रिलेटिव ह्यूमिडिटी जब अधिक तापमान से मिलता है, तब गर्मी ज्यादा महसूस होती है. यानी तापमान भले ही 40-42 डिग्री सेल्सियस हो, लेकिन ऐसे माहौल में यह 55-60 डिग्री सेल्सियस महसूस होती है. खाड़ी देशों में गर्मी और नमी का जानलेवा मिश्रण होता है. ऐसी स्थिति में इंसानी शरीर बहुत ज्यादा पसीना छोड़ता है. ज्यादा पसीना निकलने पर डिहाइड्रेशन की दिक्कत हो सकती है. सांस फूलने की समस्या हो सकती है.  

तापमान और रिलेटिव ह्यूमेडिटी की एकसाथ गणना करने से वेट बल्ब टेम्परेचर या फिर किसी तय स्थान का हीट इंडेक्स निकाल सकते हैं. इससे दोनों ही चीजों का पता चलता है. तापमान भी और नमी वाली हीटवेव भी. वेट बल्ब टेम्परेचर में हवा पानी से निकले भाप की वजह से ठंडी होती है. लेकिन एक तय दबाव पर. 

शरीर से लगातार पसीना निकलता है. जब तापमान बहुत ज्यादा बढ़ता है तब पसीना ही इंसान के शरीर को सुरक्षित रखता है. लेकिन गर्मी ज्यादा होने पर शरीर के और मौसम के ठंडा होने की प्रक्रिया धीमी होती है. इससे इंसान का शरीर बिगड़ने लगता है. हीट स्ट्रोक या मौत का खतरा रहता है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वेट बल्प टेम्परेचर की सीमा 30 से 35 डिग्री सेल्सियस है. इससे ऊपर जाने पर इंसान की मौत होना लगभग तय हो जाता है.